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दुनिया के हर ख़याल से बेगाना कर दिया - फ़ना बुलंदशहरी कविता - Darsaal

दुनिया के हर ख़याल से बेगाना कर दिया

दुनिया के हर ख़याल से बेगाना कर दिया

हुस्न-ख़याल-यार ने दीवाना कर दिया

तू ने कमाल जल्वा-ए-जानाना कर दिया

बुलबुल को फूल शम्अ' को परवाना कर दिया

मशरब नहीं ये मेरा कि पूजूँ बुतों को मैं

शौक़-ए-तलब ने दिल को सनम-ख़ाना कर दिया

उन की निगाह-ए-मस्त के क़ुर्बान जाइए

मेरे जुनूँ को हासिल-ए-मय-ख़ाना कर दिया

ठुकराए या क़ुबूल करे उस की बात है

हम ने तो पेश जान का नज़राना कर दिया

तेरे ख़िराम-ए-नाज़ पे क़ुर्बान ज़िंदगी

नक़्श-ए-क़दम को रौनक़-ए-वीराना कर दिया

मैख़ाना-ए-अलस्त का वो रिंद हूँ 'फ़ना'

जिस पर निगाह डाल दी मस्ताना कर दिया

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