ऐ सनम तुझ को हम भुला न सके
ऐ सनम तुझ को हम भुला न सके
दिल से दाग़-ए-वफ़ा मिटा न सके
अल्लाह अल्लाह उस आस्ताँ की कशिश
सर झुकाया तो सर उठा न सके
मिट गए शौक़-ए-दीद में लेकिन
आप जल्वा हमें दिखा न सके
तेरी चाहत में दर्द वो पाया
हम ज़माने में चैन पा न सके
दे के दिल तुम को जान भी दे दी
फिर भी अपना तुम्हें बना न सके
जब से निस्बत हुई तिरे दर से
हम किसी दर पे सर झुका न सके
इश्क़ में ये अजब तमाशा है
उन को पाया तो ख़ुद को पा न सके
ऐसी बदली हवा ज़माने की
ज़ख़्म सीने के मुस्कुरा न सके
तुम 'फ़ना' की लहद पे बा'द-ए-फ़ना
आ के दो फूल भी चढ़ा न सके
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