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ऐ सनम देर न कर अंजुमन-आरा हो जा - फ़ना बुलंदशहरी कविता - Darsaal

ऐ सनम देर न कर अंजुमन-आरा हो जा

ऐ सनम देर न कर अंजुमन-आरा हो जा

मेरी दम तोड़ती नज़रों का सहारा हो जा

अपने दामन में छुपा ले मुझे महबूब मिरे

मिरी बिगड़ी हुई क़िस्मत का सितारा हो जा

इश्क़ सच्चा है तो फिर रंग-ए-दुई ठीक नहीं

हम तिरे हो गए अब तू भी हमारा हो जा

मुझ को हर वक़्त है लज़्ज़त-ए-दीदार-ए-सनम

मेरी नज़रों के लिए ऐसा सहारा हो जा

मेरी चाहत का दो-आलम में भरम रह जाए

तू मुझे मेरी मोहब्बत से प्यारा हो जा

उस को पाना है तो कश्ती से किनारा कर ले

डूब कर बहर-ए-मोहब्बत का किनारा हो जा

हूँ 'फ़ना' इश्क़ में तेरे तिरा कहलाता हूँ

मेरी तक़दीर बदल मेरा सहारा हो जा

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