Friendship Poetry of Fana Bulandshahri
नाम | फ़ना बुलंदशहरी |
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अंग्रेज़ी नाम | Fana Bulandshahri |
ये तमन्ना है कि इस तरह मुसलमाँ होता
वो और होंगे जिन को हरम की तलाश है
उन के जल्वों पे हमा-वक़्त नज़र होती है
तुम हो शरीक-ए-ग़म तो मुझे कोई ग़म नहीं
तेरी नज़रों पे तसद्दुक़ आज अहल-ए-होश हैं
तेरे दर से न उठा हूँ न उठूँगा ऐ दोस्त
न दहर में न हरम में जबीं झुकी होगी
मुझ को दुनिया के हर इक ग़म से छुड़ा रक्खा है
किस तरह छोड़ दूँ ऐ यार मैं चाहत तेरी
किस को सुनाऊँ हाल-ए-ग़म कोई ग़म-आश्ना नहीं
कहीं सुकूँ न मिला दिल को बज़्म-ए-यार के बा'द
काफ़िर-ए-इश्क़ को क्या से क्या कर दिया
जो मिटा है तेरे जमाल पर वो हर एक ग़म से गुज़र गया
जब तक मिरी निगाह में तेरा जमाल है
जब तक मिरे होंटों पे तिरा नाम रहेगा
हरम है क्या चीज़ दैर क्या है किसी पे मेरी नज़र नहीं है
हाँ वही इश्क़-ओ-मोहब्बत की जिला होती है
है वज्ह कोई ख़ास मिरी आँख जो नम है
दुनिया के हर ख़याल से बेगाना कर दिया
अँधेरे लाख छा जाएँ उजाला कम नहीं होता
ऐ सनम देर न कर अंजुमन-आरा हो जा
अब तसव्वुर में हरम है न सनम-ख़ाना है