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तलाश - फख्र ज़मान कविता - Darsaal

तलाश

मेरे गाँव में मेरे घर के क़रीब

झील है एक ख़ूबसूरत सी

उस का शफ़्फ़ाफ़ नीलगूँ पानी

कितना ख़ामोश और साकिन है

बैठ कर मैं कभी किनारे पर

उस के पानी में फेंक कर पत्थर

उस में हलचल मचाता रहता हूँ

और इस वक़्त उस की वो हलचल

दिल को कितना सुकून देती है

लेकिन अफ़सोस थोड़ी देर के बा'द

ख़त्म हो जाता है वो मद्द-ओ-जज़्र

और मैं पत्थर तलाश करता हूँ

ताकि मच जाए फिर वही हलचल

मैं ने फेंके हैं इस क़दर पत्थर

अब तो मुश्किल से कोई मिलता है

और वो भी बड़ी तलाश के बा'द

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