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जो दिल को पहले मयस्सर था क्या हुआ उस का - फ़ैज़ी कविता - Darsaal

जो दिल को पहले मयस्सर था क्या हुआ उस का

जो दिल को पहले मयस्सर था क्या हुआ उस का

जो इस सुकून से बेहतर था क्या हुआ उस का

कहाँ लिए चली जाती है मुझ को वीरानी

यहीं कहीं पे मिरा घर था क्या हुआ उस का

कुछ ऐसे अश्क पिए हैं कि अब ख़बर ही नहीं

इस आँख में जो समुंदर था क्या हुआ उस का

नज़र गई सो गई पर कोई बताए मुझे

बड़े कमाल का मंज़र था क्या हुआ उस का

ये सोचने नहीं देता सितमगरों का हुजूम

कि वो जो पहला सितम-गर था क्या हुआ उस का

मैं सुब्ह ख़्वाब से जागा तो ये ख़याल आया

जो रात मेरे बराबर था क्या हुआ उस का

मैं जिस के हाथ लगा हूँ उसे मुबारक हो

मगर जो मेरा मुक़द्दर था क्या हुआ उस का

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