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अच्छा है तू ने इन दिनों देखा नहीं मुझे - फ़ैज़ी कविता - Darsaal

अच्छा है तू ने इन दिनों देखा नहीं मुझे

अच्छा है तू ने इन दिनों देखा नहीं मुझे

दुनिया ने तेरे काम का छोड़ा नहीं मुझे

हाँ ठीक है मैं भूला हुआ हूँ जहान को

लेकिन ख़याल अपना भी होता नहीं मुझे

अब अपने आँसुओं पे है सैराबी-ए-हयात

कुछ और इस फ़लक पे भरोसा नहीं मुझे

है मेहरबाँ कोई जो किए जा रहा है काम

वर्ना मआश का तो सलीक़ा नहीं मुझे

ऐ रह-गुज़ार-ए-सिलसिला-ए-इश्क़-ए-बे-लगाम

जाना कहाँ है तू ने बताया नहीं मुझे

है तो मिरा भी नाम सर-ए-फ़हरिस-ए-जुनूँ

लेकिन अभी किसी ने पुकारा नहीं मुझे

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