फिर ज़बान-ए-इश्क़ चश्म-ए-ख़ूँ-फिशाँ होने लगी

फिर ज़बान-ए-इश्क़ चश्म-ए-ख़ूँ-फिशाँ होने लगी

फिर हदीस-ए-दिल सर-ए-महफ़िल बयाँ होने लगी

फिर किसी की शोख़ नज़रों ने किया झुक कर सलाम

फिर मोहब्बत साज़-ए-दिल पे नग़्मा-ख़्वाँ होने लगी

फिर किसी की याद आई फिर हुए आँसू रवाँ

फिर सितारों की चमक दिल पर गराँ होने लगी

फिर तसव्वुर में कोई आने लगा है बार-बार

फिर मिरी उम्मीद की दुनिया जवाँ होने लगी

फिर चमन में ग़ुंचा-ए-नौरस ने लीं अंगड़ाइयाँ

फिर सुरूद-अफ़ज़ा बहार-ए-गुलिस्ताँ होने लगी

फिर पुकारा चाँद-तारों ने मुझे शाम-ए-फ़िराक़

फिर निगाह-ए-शौक़ नज़्र-ए-आसमाँ होने लगी

फिर किसी का दामन-ए-रंगीं है मेरा हाथ है

फिर दिल-ए-पुर-शौक़ की हसरत अयाँ होने लगी

फिर समाया है मिरी नज़रों में वो माह-ए-मुबीं

फिर निगाह-ए-दिल जवाब-ए-आसमाँ होने लगी

फिर घटा उठने लगी तौबा के फिर लाले पड़े

फिर ख़ुशामद तेरी ऐ पीर-ए-मुग़ाँ होने लगी

फिर चला दीवाना 'फ़ैज़ी' कू-ए-जानाँ की तरफ़

फिर जुनून-ए-इश्क़ की हालत अयाँ होने लगी

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