इसी जहाज़ के सहरा में डूब जाने की
इसी जहाज़ के सहरा में डूब जाने की
ख़बर मिली थी मुझे ख़्वाब में ख़ज़ाने की
बहुत से दीदा ओ नादीदा ख़्वाब सामने थे
इक ऐसी सम्त थी करवट मिरे सिरहाने की
मैं इस जगह पे जो इक दिन पलट के आया तो
कोई भी चीज़ नहीं थी मिरे ज़माने की
हर एक काम सुहुलत से होता रहता था
कोई ख़लिश नहीं होती थी कर दिखाने की
मैं इक ख़याल का ख़ेमा लगाए बैठा था
बहुत जगह थी मिरे पास सर छुपाने की
वो क्या ख़ुशी थी जो दिल में बहाल रहती थी
मगर वज्ह नहीं बनती थी मुस्कुराने की
इक ऐसे वक़्त में वो दोनों हो गए आबाद
जहाँ किसी को इजाज़त नहीं थी आने की
अजीब दश्त था जो मुझ से दाद चाहता था
क़रीब फैले हुए दूर के ज़माने की
तमाम शहर में पूरी तरह ख़मोशी थी
मुझे पड़ी थी कोई गीत गुनगुनाने की
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