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तराना - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ कविता - Darsaal

तराना

दरबार-ए-वतन में जब इक दिन सब जाने वाले जाएँगे

कुछ अपनी सज़ा को पहुँचेंगे, कुछ अपनी जज़ा ले जाएँगे

ऐ ख़ाक-नशीनो उठ बैठो वो वक़्त क़रीब आ पहुँचा है

जब तख़्त गिराए जाएँगे जब ताज उछाले जाएँगे

अब टूट गिरेंगी ज़ंजीरें अब ज़िंदानों की ख़ैर नहीं

जो दरिया झूम के उट्ठे हैं तिनकों से न टाले जाएँगे

कटते भी चलो, बढ़ते भी चलो, बाज़ू भी बहुत हैं सर भी बहुत

चलते भी चलो कि अब डेरे मंज़िल ही पे डाले जाएँगे

ऐ ज़ुल्म के मातो लब खोलो चुप रहने वालो चुप कब तक

कुछ हश्र तो उन से उट्ठेगा कुछ दूर तो नाले जाएँगे

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Tarana In Hindi By Famous Poet Faiz Ahmad Faiz. Tarana is written by Faiz Ahmad Faiz. Complete Poem Tarana in Hindi by Faiz Ahmad Faiz. Download free Tarana Poem for Youth in PDF. Tarana is a Poem on Inspiration for young students. Share Tarana with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.