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तह-ए-नुजूम - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ कविता - Darsaal

तह-ए-नुजूम

तह-ए-नुजूम, कहीं चाँदनी के दामन में

हुजूम-ए-शौक़ से इक दिल है बे-क़रार अभी

ख़ुमार-ए-ख़्वाब से लबरेज़ अहमरीं आँखें

सफ़ेद रुख़ पे परेशान अम्बरीं आँखें

छलक रही है जवानी हर इक बुन-ए-मू से

रवाँ हो बर्ग-ए-गुल-ए-तर से जैसे सैल-ए-शमीम

ज़िया-ए-मह में दमकता है रंग-ए-पैराहन

अदा-ए-इज्ज़ से आँचल उड़ा रही है नसीम

दराज़ क़द की लचक से गुदाज़ पैदा है

अदा-ए-नाज़ से रंग-ए-नियाज़ पैदा है

उदास आँखों में ख़ामोश इल्तिजाएँ हैं

दिल-ए-हज़ीं में कई जाँ-ब-लब दुआएँ हैं

तह-ए-नुजूम कहीं चाँदनी के दामन में

किसी का हुस्न है मसरूफ़-ए-इंतिज़ार अभी

कहीं ख़याल के आबाद-कर्दा गुलशन में

है एक गुल कि है ना-वाक़िफ़-ए-बहार अभी

(2005) Peoples Rate This

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