नज़्र-ए-मौलाना हसरत-मुहानी
मर जाएँगे ज़ालिम की हिमायत न करेंगे
अहरार कभी तर्क-ए-रिवायत न करेंगे
क्या कुछ न मिला है जो कभी तुझ से मिलेगा
अब तेरे न मिलने की शिकायत न करेंगे
शब बीत गई है तो गुज़र जाएगा दिन भी
हर लहज़ा जो गुज़री वो हिकायत न करेंगे
ये फ़क़्र दिल-ए-ज़ार का एवज़ाना बहुत है
शाही नहीं माँगेंगे विलायत न करेंगे
हम शैख़ न लीडर न मुसाहिब न सहाफ़ी
जो ख़ुद नहीं करते वो हिदायत न करेंगे
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