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मेरे नदीम! - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ कविता - Darsaal

मेरे नदीम!

ख़याल ओ शेर की दुनिया में जान थी जिन से

फ़ज़ा-ए-फ़िक्र-ओ-अमल अर्ग़वान थी जिन से

वो जिन के नूर से शादाब थे मह-ओ-अंजुम

जुनून-ए-इश्क़ की हिम्मत जवान थी जिन से

वो आरज़ुएँ कहाँ सो गई हैं मेरे नदीम?

वो ना-सुबूर निगाहें, वो मुंतज़िर राहें

वो पास-ए-ज़ब्त से दिल में दबी हुई आहें

वो इंतिज़ार की रातें, तवील तीरा-ओ-तार

वो नीम-ख़्वाब, शबिस्ताँ वो मख़मलीं बाहें

कहानियाँ थीं कहीं खो गई हैं मेरे नदीम

मचल रहा है रग-ए-ज़िंदगी में ख़ून-ए-बहार

उलझ रहे हैं पुराने ग़मों से रूह के तार

चलो कि चल के चराग़ाँ करें दयार-ए-हबीब

हैं इंतिज़ार में अगली मोहब्बतों के मज़ार

मोहब्बतें जो फ़ना हो गई हैं मेरे नदीम!

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