मर्ग-ए-सोज़-ए-मोहब्बत
आओ कि मर्ग-ए-सोज़-ए-मोहब्बत मनाएँ हम
आओ कि हुस्न-ए-माह से दिल को जलाएँ हम
ख़ुश हूँ फ़िराक़-ए-क़ामत-ओ-रुख़्सार-ए-यार से
सर्व-ओ-गुल-ओ-समन से नज़र को सताएँ हम
वीरानी-ए-हयात को वीरान-तर करें
ले नासेह आज तेरा कहा मान जाएँ हम
फिर ओट ले के दामन-ए-अब्र-ए-बहार की
दिल को मनाएँ हम कभी आँसू बहाएँ हम
सुलझाएँ बे-दिली से ये उलझे हुए सवाल
वाँ जाएँ या न जाएँ न जाएँ कि जाएँ हम
फिर दिल को पास-ए-ज़ब्त की तल्क़ीन कर चुकें
और इम्तिहान-ए-ज़ब्त से फिर जी चुराईं हम
आओ कि आज ख़त्म हुई दास्तान-ए-इश्क़
अब ख़त्म-ए-आशिक़ी के फ़साने सुनाएँ हम
(2785) Peoples Rate This