मेजर-इसहाक़ की याद में
लो तुम भी गए हम ने तो समझा था कि तुम ने
बाँधा था कोई यारों से पैमान-ए-वफ़ा और
ये अहद कि ता-उम्र रवाँ साथ रहोगे
रस्ते में बिछड़ जाएँगे जब अहल-ए-सफ़ा और
हम समझे थे सय्याद का तरकश हुआ ख़ाली
बाक़ी था मगर उस में अभी तीर-ए-क़ज़ा और
हर ख़ार रह-ए-दश्त-ए-वतन का है सवाली
कब देखिए आता है कोई आबला-पा और
आने में तअम्मुल था अगर रोज़-ए-जज़ा को
अच्छा था ठहर जाते अगर तुम भी ज़रा और
(2023) Peoples Rate This