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लाओ तो क़त्ल-नामा मिरा - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ कविता - Darsaal

लाओ तो क़त्ल-नामा मिरा

सुनने को भीड़ है सर-ए-महशर लगी हुई

तोहमत तुम्हारे इश्क़ की हम पर लगी हुई

रिंदों के दम से आतिश-ए-मय के बग़ैर भी

है मय-कदे में आग बराबर लगी हुई

आबाद कर के शहर-ए-ख़मोशाँ हर एक सू

किस खोज में है तेग़-ए-सितम-गर लगी हुई

आख़िर को आज अपने लहू पर हुई तमाम

बाज़ी मियान-ए-क़ातिल-ओ-ख़ंजर लगी हुई

''लाओ तो क़त्ल-नामा मिरा मैं भी देख लूँ

किस किस की मोहर है सर-ए-महज़र लगी हुई''

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