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दिलदार देखना - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ कविता - Darsaal

दिलदार देखना

तूफ़ाँ ब-दिल है हर कोई दिलदार देखना

गुल हो न जाए मिशअल-ए-रुख़्सार देखना

आतिश ब-जाँ है हर कोई सरकार देखना

लौ दे उठे न तुर्रा-ए-तर्रार देखना

जज़्ब-ए-मुसाफ़िरान-ए-रह-ए-यार देखना

सर देखना, न संग, न दीवार देखना

कू-ए-जफ़ा में क़हत-ए-ख़रीदार देखना

हम आ गए तो गर्मी-ए-बाज़ार देखना

उस दिल-नवाज़ शहर के अतवार देखना

बे इल्तिफ़ात बोलना, बेज़ार देखना

ख़ाली हैं गरचे मसनद ओ मिम्बर, निगूँ है ख़ल्क़

रोअब-ए-क़बा ओ हैबत-ए-दस्तार देखना

जब तक नसीब था तिरा दीदार देखना

जिस सम्त देखना, गुल-ओ-गुलज़ार देखना

फिर हम तमीज़-ए-रोज़-ओ-मह-ओ-साल कर सकें

ऐ याद-ए-यार फिर इधर इक बार देखना

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