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बुनियाद कुछ तो हो - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ कविता - Darsaal

बुनियाद कुछ तो हो

कू-ए-सितम की ख़ामुशी आबाद कुछ तो हो

कुछ तो कहो सितम-कशे फ़रियाद कुछ तो हो

बेदाद-गर से शिकवा-ए-बेदाद कुछ तो हो

बोलो कि शोर-ए-हश्र की ईजाद कुछ तो हो

मरने चले तो सतवत-ए-क़ातिल का ख़ौफ़ क्या

इतना तो हो कि बाँधने पाए न दस्त ओ पा

मक़्तल में कुछ तो रंग जमे जश्न-ए-रक़्स का

रंगीं लहू से पंजा-ए-सय्याद कुछ तो हो

ख़ूँ पर गवाह दामन-ए-जल्लाद कुछ तो हो

जब ख़ूँ-बहा तलब करें बुनियाद कुछ तो हो

गर तन नहीं ज़बाँ सही आज़ाद कुछ तो हो

दुश्नाम नाला हाव-हू फ़रियाद कुछ तो हो

चीख़े है दर्द ऐ दिल-ए-बर्बाद कुछ तो हो

बोलो कि शोर-ए-हश्र की ईजाद कुछ तो हो

बोलो कि रोज़-ए-अदल की बुनियाद कुछ तो हो

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