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आज शब कोई नहीं है - फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ कविता - Darsaal

आज शब कोई नहीं है

आज शब दिल के क़रीं कोई नहीं है

आँख से दूर तिलिस्मात के दर वा हैं कई

ख़्वाब-दर-ख़्वाब महल्लात के दर वा हैं कई

और मकीं कोई नहीं है,

आज शब दिल के क़रीं कोई नहीं है

कोई नग़मा, कोई ख़ुशबू, कोई काफ़िर-सूरत

कोई उम्मीद, कोई आस मुसाफ़िर-सूरत

कोई गम, कोई कसक, कोई शक, कोई यक़ीं

कोई नहीं है

आज शब दिल के क़रीं कोई नहीं है

तुम अगर हो, तो मिरे पास हो या दूर हो तुम

हर घड़ी साया-गर-ए-ख़ातिर-ए-रंजूर हो तुम

और नहीं हो तो कहीं... कोई नहीं, कोई नहीं है

आज शब दिल के क़रीं कोई नहीं है

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