हर क़दम ख़ौफ़ है दहशत है रिया-कारी है
हर क़दम ख़ौफ़ है दहशत है रिया-कारी है
रौशनी में भी अंधेरों का सफ़र जारी है
ताक़त-ए-कुफ़्र ने कोहराम मचा रक्खा है
जाने किस किस को मिटाने की ये तय्यारी है
मिल के सब क़हर बपा करते हैं इंसानों पर
है जुनूँ ज़ेहन में और आँख में चिंगारी है
अपने अंदाज़ से एक साथ यहाँ पर रहना
ये हमारी ही नहीं तेरी भी लाचारी है
हो ग़रीब और अमीर चाहे हो बूढ़ा बच्चा
कौन है अपनी जिसे जान नहीं प्यारी है
हम ने हर अहद में रक्खा है भरम तेरा जब
तू ही ऐ वक़्त बता क्या ये वफ़ादारी है
उस को दुनिया में कोई आँख दिखा सकता है क्या
'रश्क' जिस क़ौम में एहसास है बेदारी है
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