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शामियानों की वज़ाहत तो नहीं की गई है - फ़ैसल अजमी कविता - Darsaal

शामियानों की वज़ाहत तो नहीं की गई है

शामियानों की वज़ाहत तो नहीं की गई है

आज ख़ैरात है दावत तो नहीं की गई है

देखती है हमें दुनिया उसे रोका जाए

साथ रहते हैं मोहब्बत तो नहीं की गई है

हम ने कासा ही बढ़ाया है दुआ देते हुए

दर-ब-दर जा के शिकायत तो नहीं की गई है

रास्ता है इसे मिलने की जगह कहते हैं

आप से मिलने की ज़हमत तो नहीं की गई है

आज फिर आईना देखा है कई साल के बाद

कहीं इस बार भी उजलत तो नहीं की गई है

पहली धड़कन ही मियाँ वज़न में थी शुक्र करो

शाइरी आज इनायत तो नहीं की गई है

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