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किसी ने कैसे ख़ज़ाने में रख लिया है मुझे - फ़ैसल अजमी कविता - Darsaal

किसी ने कैसे ख़ज़ाने में रख लिया है मुझे

किसी ने कैसे ख़ज़ाने में रख लिया है मुझे

उठा के अगले ज़माने में रख लिया है मुझे

वो मुझ से अपने तहफ़्फ़ुज़ की भीक ले के गया

और अब उसी ने निशाने में रख लिया है मुझे

मैं खेल हार चुका हूँ तिरी शराकत में

कि तू ने मात के ख़ाने में रख लिया है मुझे

मिरे वजूद की शायद यही हक़ीक़त है

कि उस ने अपने फ़साने में रख लिया है मुझे

शजर से बिछड़ा हुआ बर्ग-ए-ख़ुश्क हूँ 'फ़ैसल'

हवा ने अपने घराने में रख लिया है मुझे

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