तिफ़्लाँ की तो कुछ तक़्सीर न थी

ऐ दोस्त पुराने पहचाने

हम कितनी मुद्दत बाद मिले

और कितनी सदियों बाद मिली

ये एक निगाह-ए-महर-ओ-सख़ा

जो अपनी सख़ा से ख़ुद पुर-नम

बैठो तो ज़रा

बतलाओ तो क्या

ये सच है मेरे तआक़ुब में

फिरता है हुजूम-ए-संग-ज़नाँ?

क्या नील बहुत हैं चेहरे पर?

क्या कासा-ए-सर है ख़ून से तर?

पैवंद-ए-क़बा दुश्नाम बहुत

पैवस्त-ए-जिगर इल्ज़ाम बहुत

ये नज़र-ए-करम क्यूँ है पुर-नम?

जब निकले कू-ए-मलामत में

इक ग़ौग़ा तो हम ने भी सुना

तिफ़्लाँ की तो कुछ तक़्सीर न थी

हम आप ही थे यूँ ख़ुद-रफ़्ता

मदहोशी ने मोहलत ही न दी

हम मुड़ के नज़ारा कर लेते

बचने की तो सूरत ख़ैर न थी

दरमाँ का ही चारा कर लेते

पल भर भी हमारे कार-ए-जुनूँ

ग़फ़लत जो गवारा कर लेते

(1333) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Tiflan Ki To Kuchh Taqsir Na Thi In Hindi By Famous Poet Fahmida Riaz. Tiflan Ki To Kuchh Taqsir Na Thi is written by Fahmida Riaz. Complete Poem Tiflan Ki To Kuchh Taqsir Na Thi in Hindi by Fahmida Riaz. Download free Tiflan Ki To Kuchh Taqsir Na Thi Poem for Youth in PDF. Tiflan Ki To Kuchh Taqsir Na Thi is a Poem on Inspiration for young students. Share Tiflan Ki To Kuchh Taqsir Na Thi with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.