Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_5beaeb045b8b82db349bb2a71d6a5fcf, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
पत्थर की ज़बान - फ़हमीदा रियाज़ कविता - Darsaal

पत्थर की ज़बान

इसी अकेले पहाड़ पर तू मुझे मिला था

यही बुलंदी है वस्ल तेरा

यही है पत्थर मिरी वफ़ा का

उजाड़ चटयल उदास वीराँ

मगर मैं सदियों से, इस से लिपटी हुई खड़ी हूँ

फटी हुई ओढ़नी में साँसें तिरी समेटे

हवा के वहशी बहाओ पर उड़ रहा है दामन

सँभाला लेती हूँ पत्थरों को गले लगा कर

नुकीले पत्थर

जो वक़्त के साथ मेरे सीने में इतने गहरे उतर गए हैं

कि मेरे जीते लहू से सब आस पास रंगीन हो गया है

मगर मैं सदियों से इस से लिपटी हुई खड़ी हूँ

और एक ऊँची उड़ान वाले परिंद के हाथ

तुझ को पैग़ाम भेजती हूँ

तू आ के देखे

तो कितना ख़ुश हो

कि संग-रेज़े तमाम याक़ूत बन गए हैं

दमक रहे हैं

गुलाब पत्थर से उग रहा है

(2074) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Patthar Ki Zaban In Hindi By Famous Poet Fahmida Riaz. Patthar Ki Zaban is written by Fahmida Riaz. Complete Poem Patthar Ki Zaban in Hindi by Fahmida Riaz. Download free Patthar Ki Zaban Poem for Youth in PDF. Patthar Ki Zaban is a Poem on Inspiration for young students. Share Patthar Ki Zaban with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.