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पछतावा - फ़हमीदा रियाज़ कविता - Darsaal

पछतावा

ख़ुदा-ए-हर-दो-जहाँ ने जब आदमी को पहले-पहल सज़ा दी

बहिश्त से जब उसे निकाला

तो उस को बख़्शा गया ये साथी

ये ऐसा साथी है जो हमेशा ही आदमी के क़रीं रहा है

तमाम अदवार छान डालो

रिवायतों में हिकायतों में

अज़ल से तारीख़ कह रही है

कि आदमी की जबीं हमेशा नदामतों से अरक़ रही है

वो वक़्त जब से कि आदमी ने

ख़ुदा की जन्नत में शजर-ए-मम्नूआ चख लिया

और

सरकशी की

तभी से इस फल का ये कसीला ज़ाइक़ा

आदमी के काम-ओ-दहन में हिर-फिर के आ रहा है

मगर नदामत के तल्ख़ से ज़ाइक़े से पहले गुनाह की बे-पनाह लज़्ज़त

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