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मेघ दूत - फ़हमीदा रियाज़ कविता - Darsaal

मेघ दूत

सनसनाहटों के साथ

गड़गड़ाहटो के साथ

आ गया!

पवन-रथ पे बैठ कर

मेरा मेघ देवता

दोश पर हवाओं के

बाल उड़ाता हुआ

उस का जामुनी बदन

आसमाँ पे छा गया

दूर तक गरज हुई

ज़मीं दहलने लगी

आसमाँ सिमट गया

बड़ी घन-गरज के साथ

टूट कर बरस पड़ा

और मैं आँख मूँद कर

हाथ पसारे हुए

दौड़ती चली गई

अंग से लगा रही

नील उस के अंग का

मैं कि बिंत-ए-जिज्र हूँ

मुझ में ऐसी प्यास है

मैं कि मेरे वास्ते

वस्ल भी फ़िराक़ है

मुझ में ऐसी आग है

मेघ-रस में भीग कर

हाँफती खड़ी खड़ी

कह रहा है दिल मेरा

यही है

मधुर मिलन की घड़ी

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