एक लड़की से
संग-दिल रिवाजों की
ये इमारत-ए-कोहना
अपने आप पर नादिम
अपने बोझ से लर्ज़ां
जिस का ज़र्रा ज़र्रा है
ख़ुद-शिकस्तगी सामाँ
सब ख़मीदा दीवारें
सब झुकी हुई गुड़ियाँ
संग-दिल रिवाजों के
ख़स्ता-हाल ज़िंदाँ में
इक सदा-ए-मस्ताना
एक रक़्स-ए-रिंदाना
ये इमारत-ए-कोहना टूट भी तो सकती है
ये असीर-ए-शहज़ादी छूट भी तो सकती है
ये असीर-ए-शहज़ादी
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