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ज़रा मोहतात होना चाहिए था - फ़हमी बदायूनी कविता - Darsaal

ज़रा मोहतात होना चाहिए था

ज़रा मोहतात होना चाहिए था

बग़ैर अश्कों के रोना चाहिए था

अब उन को याद कर के रो रहे हैं

बिछड़ते वक़्त रोना चाहिए था

मिरी वादा-ख़िलाफ़ी पर वो चुप है

उसे नाराज़ होना चाहिए था

चला आता यक़ीनन ख़्वाब में वो

हमें कल रात सोना चाहिए था

सुई धागा मोहब्बत ने दिया था

तो कुछ सीना पिरोना चाहिए था

हमारा हाल तुम भी पूछते हो

तुम्हें मालूम होना चाहिए था

वफ़ा मजबूर तुम को कर रही थी

तो फिर मजबूर होना चाहिए था

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