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तेरे जैसा कोई मिला ही नहीं - फ़हमी बदायूनी कविता - Darsaal

तेरे जैसा कोई मिला ही नहीं

तेरे जैसा कोई मिला ही नहीं

कैसे मिलता कहीं पे था ही नहीं

घर के मलबे से घर बना ही नहीं

ज़लज़ले का असर गया ही नहीं

मुझ पे हो कर गुज़र गई दुनिया

मैं तिरी राह से हटा ही नहीं

कल से मसरूफ़-ए-ख़ैरियत मैं हूँ

शेर ताज़ा कोई हुआ ही नहीं

रात भी हम ने ही सदारत की

बज़्म में और कोई था ही नहीं

यार तुम को कहाँ कहाँ ढूँडा

जाओ तुम से मैं बोलता ही नहीं

याद है जो उसी को याद करो

हिज्र की दूसरी दवा ही नहीं

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