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एक मेहमाँ का हिज्र तारी है - फ़हमी बदायूनी कविता - Darsaal

एक मेहमाँ का हिज्र तारी है

एक मेहमाँ का हिज्र तारी है

मेज़बानी की मश्क़ जारी है

सिर्फ़ हल्की सी बे-क़रारी है

आज की रात दिल पे भारी है

कोई पंछी कोई शिकारी है

ज़िंदा रहने की जंग जारी है

बस तिरे ग़म की ग़म-गुसारी है

और क्या शाएरी हमारी है

आप करते हैं शबनमी बातें

और मिरी प्यास रेग-ज़ारी है

अब कहाँ दश्त में जुनूँ वाले

जिस को देखो वही शिकारी है

मेरे आँसू नहीं हैं ला-वारिस

इक तबस्सुम से रिश्ते-दारी है

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