Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_95db235c26c7f461a892c7d4b54ac3a2, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
सारबाँ - फ़हीम शनास काज़मी कविता - Darsaal

सारबाँ

सारबाँ निकले थे जिस वक़्त घरों से अपने

आशियानों को परिंदे भी नहीं छोड़ते जब

रास्ते

रस्तों की आग़ोश ही में सोए थे

और हवा

सब्ज़ पहाड़ों से नहीं उतरी थी

आसमाँ पर अभी तारों की सजी थी महफ़िल

सारबाँ निकले थे जिस वक़्त घरों से अपने

रंग ख़्वाबों में अभी घुलते थे

जिस्म में वस्ल की लज़्ज़त का नशा बाक़ी था

गर्म बिस्तर में

''गुल-ए-ख़ूबी'' परेशाँ थी अभी

दूध से ख़ूब भरा

एक कटोरा था तिपाई पे धरा

सारबाँ निकले थे जिस वक़्त सफ़र पर अपने

चार-सू गहरी ख़मोशी थी

चाँदनी रीत के सीने पे अभी सोई थी

और धीरे से

सबा ख़ुशबुएँ बिखराती थी

ओस से भीगी हुई

घास की हर पत्ती झुकी जाती थी

रात के नील में कुछ नूर घुला जाता था

ये जहाँ आईना-ख़ाना सा नज़र आता था

सारबाँ गहरी ख़मोशी में घरों से निकले

लौ चराग़ों की उन्हें झाँकती थी

धूल क़दमों से लिपटते हुए ये कहती थी:

तुम कहीं जाओ न अभी

साए अश्जार से रस्तों पे उतर आए थे

दर-ओ-दीवार ख़मोशी से थे फ़रियाद-कुनाँ

थीं जुगाली में मगन ऊंटनियां

घंटियाँ जागती थीं

लज़्ज़त-ए-वस्ल से मदहोश हवा जागती थी

पंखुड़ी होंटों पे ख़ामोश दुआ जागती थी

चार-सू गहरी ख़मोशी थी

फ़ज़ा जागती थी

सारबाँ निकले थे जिस वक़्त सफ़र पर अपने

(963) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Sarban In Hindi By Famous Poet Faheem Shanas Kazmi. Sarban is written by Faheem Shanas Kazmi. Complete Poem Sarban in Hindi by Faheem Shanas Kazmi. Download free Sarban Poem for Youth in PDF. Sarban is a Poem on Inspiration for young students. Share Sarban with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.