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समझ रहा था मैं ये दिन गुज़रने वाला नहीं - फ़हीम शनास काज़मी कविता - Darsaal

समझ रहा था मैं ये दिन गुज़रने वाला नहीं

समझ रहा था मैं ये दिन गुज़रने वाला नहीं

खुला कि कोई भी लम्हा ठहरने वाला नहीं

कोई भी रस्ता किसी सम्त को नहीं जाता

कोई सफ़र मिरी तकमील करने वाला नहीं

हवा की अब्र की कोशिश तो पूरी पूरी है

मगर धुवें की तरह मैं बिखरने वाला नहीं

मैं अपने-आप को बस एक बार देखूँगा

फिर इस के ब'अद किसी से भी डरने वाला नहीं

चराग़-ए-जाँ लिए किस दश्त में खड़ा हूँ मैं

कोई भी क़ाफ़िला याँ से गुज़रने वाला नहीं

मैं क्या करूँ कोई तस्वीर गर अधूरी है

मैं अपने रंग तो अब उस में भरने वाला नहीं

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