हम अहल-ए-ग़म को हक़ारत से देखने वालो
तुम्हारी नाव इन्हीं आँसुओं से चलती है
Habib Jalib
Javed Akhtar
Gulzar
Parveen Shakir
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Jaun Eliya
Wasi Shah
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
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वाक़िफ़ कहाँ ज़माना हमारी उड़ान से
मरघट पथ पर देख के हम को जाने क्या क्या सोचें वो
कितने तूफ़ानों से हम उलझे तुझे मालूम क्या
बंद कमरे में तिरा दर्द न बुझ जाए कहीं
रस्ते में 'फहीम' उस की तबीअत का बिगड़ना
शाम ख़ामोश है पेड़ों पे उजाला कम है
जाएँगे एक रोज़ समुंदर की गोद में
मिलन के ब'अद आती है जुदाई
न बात दिल की सुनूँ मैं न दिल सुने मेरी
किसी के दर पे सज्दा करते करते
तेरी यादें हो गईं जैसे मुक़द्दस आयतें