होली
आज है रोज़-ए-वसंत ऐ दोस्ताँ
सर्व-क़द है बोस्ताँ के दरमियाँ
बाग़ में है ऐश-ओ-इशरत रात दिन
गुल-रुख़ाँ बिन नईं गुज़रती एक दिन
सब के तन में है लिबास-ए-केसरी
करते हैं सद-बर्ग सूँ लब हम-सरी
ख़ूब-रू सब बन रहे हैं लाल ज़र्द
बाग़ का बाज़ार है इस वक़्त सर्द
चाँद जैसा है शफ़क़ भीतर अयाँ
चेहरा सब का अज़-गुलाल आतिश-फ़िशाँ
हर छबेली अज़-लिबास-ए-केसरी
ताज़ा करती है बहार-ए-जाफ़री
नाचती गा गा के होली दम-ब-दम
ज्यूँ सभा इन्दर की दर बाग़-ए-इरम
अज़ कबीर-ओ-रंग-ए-केसर और गुलाल
अब्र छाया है सफ़ेद-ओ-ज़र्द-ओ-लाल
जियूँ झड़ी हर सू है पिचकारी की धार
दौड़ती हैं नारियाँ बिजली के सार
जोश-ए-इशरत घर-ब-घर है हर तरफ़
नाचती हैं सब तकल्लुफ़-बर-तरफ़
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