मुझ पास कभी वो क़द-ए-शमशाद न आया
मुझ पास कभी वो क़द-ए-शमशाद न आया
इस घर मने वो दिल-बर-ए-उस्ताद न आया
गुलशन मिरी अँखियाँ में लगे गुलख़न-ए-दोज़ख़
जो सैर को मुझ साथ परी-ज़ाद न आया
साँझ आई दियो दिन बी हुआ फ़िक्र में आख़िर
वो दिल-बर-ए-जादूगर-ओ-सय्याद न आया
आया न हमन पास किया वा'दा-ख़िलाफ़ी
'फ़ाएज़' का कुछ अहवाल मगर याद न आया
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