इन उजड़ी बस्तियों का कोई तो निशाँ रहे
चूल्हे जलें कि घर ही जलें पर धुआँ रहे
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Gulzar
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दरख़्त-ए-जाँ पर अज़ाब-रुत थी न बर्ग जागे न फूल आए
वो सारी ख़ुशियाँ जो उस ने चाहीं उठा के झोली में अपनी रख लीं
तुम ऐसा करना कि कोई जुगनू कोई सितारा सँभाल रखना
बिछड़ने वाले ने वक़्त-ए-रुख़्सत कुछ इस नज़र से पलट के देखा