इन उजड़ी बस्तियों का कोई तो निशाँ रहे

इन उजड़ी बस्तियों का कोई तो निशाँ रहे

चूल्हे जलें कि घर ही जलें पर धुआँ रहे

नेरो ने बंसरी की नई तान छेड़ दी

अब रोम का नसीब फ़क़त दास्ताँ रहे

पानी समुंदरों का न छलनी से मापिये

ऐसा न हो कि सारा किया राएगाँ रहे

मुझ को सुपुर्द-ए-ख़ाक करो इस दुआ के साथ

आँगन में फूल खिलते रहें और मकाँ रहे

काटी है उम्र रात की पहनाइयों के साथ

हम शहर-ए-बे-चराग़ में ऐ बे-कसाँ रहे

'आज़र' हर एक गाम पे काटा है संग-ए-जब्र

हाथों में तेशा सामने कोह-ए-गिराँ रहे

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In UjDi Bastiyon Ka Koi To Nishan Rahe In Hindi By Famous Poet Ezaz Ahmad Azar. In UjDi Bastiyon Ka Koi To Nishan Rahe is written by Ezaz Ahmad Azar. Complete Poem In UjDi Bastiyon Ka Koi To Nishan Rahe in Hindi by Ezaz Ahmad Azar. Download free In UjDi Bastiyon Ka Koi To Nishan Rahe Poem for Youth in PDF. In UjDi Bastiyon Ka Koi To Nishan Rahe is a Poem on Inspiration for young students. Share In UjDi Bastiyon Ka Koi To Nishan Rahe with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.