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उजाले तेल छिड़कने लगे उजालों पर - एज़ाज़ अफ़ज़ल कविता - Darsaal

उजाले तेल छिड़कने लगे उजालों पर

उजाले तेल छिड़कने लगे उजालों पर

अजीब वक़्त पड़ा है चराग़ वालों पर

तुम्हारा आलम-ए-मस्ती ढका छुपा ही सही

मिरी निगाह है टूटे हुए पियालों पर

तुम्हारे ज़ेहन में जो आज चुभ रहे होंगे

मैं कल से सोच रहा हूँ उन्हीं सवालों पर

न उठ सका तिरे तर्ज़-ए-ख़िराम से पर्दा

हवाएँ डाल गईं ख़ाक पाएमालों पर

मुहाकमा न करें आप अपनी बातों का

ये काम छोड़ दिया जाए सुनने वालों पर

मुसल्लिमात से क्यूँ क़स्द-ए-इंहिराफ़ किया

अक़ीदे टूट पड़े हैं मिरे सवालों पर

ये क्या ज़रूर कि रुख़ सब का एक जानिब हो

फ़ज़ा की क़ैद लगाओ न उड़ने वालों पर

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