उजाला कैसा उजाले का ख़्वाब ला न सके
उजाला कैसा उजाले का ख़्वाब ला न सके
सहर से माँग के हम आफ़्ताब ला न सके
हम अपने चेहरा-ए-बे-दाग़ के लिए ऐ अक़्ल
तिरी दुकान से कोई नक़ाब ला न सके
जो चाँद पर भी गए हम तो ख़ाक ही लाए
ज़मीं की नज़्र को इक आफ़्ताब ला न सके
गए तो थे तिरे जल्वों को जाँचने लेकिन
बचा के हम नज़र-ए-इंतिख़ाब ला न सके
ज़मीं की बात ज़मीं की ज़बाँ में कहना थी
हम आसमान से कोई किताब ला न सके
(878) Peoples Rate This