सलीक़ा इतना तो ऐ शौक़-ए-ख़ुश-कलाम आए
सलीक़ा इतना तो ऐ शौक़-ए-ख़ुश-कलाम आए
उन्हीं की बात हो लेकिन न उन का नाम आए
ख़िरद भी गोश-बर-आवाज़-ए-वक़्त थी लेकिन
पयाम जितने भी आए जुनूँ के नाम आए
न चल सका कोई मेरी निगाह-ए-शौक़ के साथ
तुम्हारे जल्वे भी आए तो चंद गाम आए
न जाने हुस्न-ए-हक़ीक़त की जल्वा-गाह से क्यूँ
फ़साने जितने भी आए वो ना-तमाम आए
किसी ने सुब्ह सँवारी किसी ने शाम अपनी
मिरी नज़र के उजाले सभों के काम आए
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