ख़्वाबों के सनम-ख़ाने जब ढाए गए होंगे
ख़्वाबों के सनम-ख़ाने जब ढाए गए होंगे
उस दौर के सब आज़र बुलवाए गए होंगे
तू भी न बची होगी ऐ आफ़ियत-अंदेशी
हर सम्त से जब पत्थर बरसाए गए होंगे
फिर उस ने मसाइल का हल ढूँड लिया होगा
फिर लोग मसाइल में उलझाए गए होंगे
हम गुज़रे कि तुम गुज़रे ये देखने कौन आता
थे जितने तमाशाई सब लाए गए होंगे
यारान-ए-क़दह से कुछ लग़्ज़िश भी हुई होगी
दानिस्ता भी कुछ साग़र छलकाए गए होंगे
'अफ़ज़ल' का मुक़द्दर है हक़-गोई-ओ-रुसवाई
सच बात कही होगी झुटलाए गए होंगे
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