जाम खनके तो सँभाला न गया दिल तुम से
जाम खनके तो सँभाला न गया दिल तुम से
है अभी दूर बहुत ज़ब्त की मंज़िल तुम से
हम तो दरिया में बहुत दूर निकल आए हैं
लौट जाओ अभी नज़दीक है साहिल तुम से
जुस्तुजू सरहद-ए-इदराक से आगे न बढ़ी
दो-क़दम तय न हुआ मरहला-ए-दिल तुम से
ख़ल्वत-ए-शौक़ के दर बंद किए लेता हूँ
अब शिकायत न करेगी कोई महफ़िल तुम से
सख़्त-जानी मिरी आसूदा-ए-ख़ंजर तो न थी
क्यूँ निकाला गया हौसला-ए-दिल तुम से
तुम तो नग़्मों की फ़सीलों पे बहुत नाज़ाँ थे
क्यूँ दबाया न गया शोर-ए-सलासिल तुम से
धड़कनों को नज़र-अंदाज़ किए जाते हो
फिर न कहना कि मुख़ातब न हुआ दिल तुम से
(961) Peoples Rate This