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हम ने मयख़ाने की तक़्दीस बचा ली होती - एज़ाज़ अफ़ज़ल कविता - Darsaal

हम ने मयख़ाने की तक़्दीस बचा ली होती

हम ने मयख़ाने की तक़्दीस बचा ली होती

कोई बोतल तो यहाँ ख़ून से ख़ाली होती

इस की बुनियाद अगर ज़ोहद ने डाली होती

दीन की तरह ये दुनिया भी ख़याली होती

अंजुमन दाग़-ए-जिगर की मुतहम्मिल न हुई

काश हम ने भी कोई शम्अ' जला ली होती

सच तो ये है कहा गर जुर्म न साबित होता

हम ने ख़ुद माँग के जीने की सज़ा ली होती

आज इस मोड़ पे हम हैं कि अगर बस चलता

लौट जाने की कोई राह निकाली होती

तुम ने क़ानून में तरमीम की ज़हमत क्यूँ की

हम ने ख़ुद क़ैद की मीआ'द बढ़ा ली होती

वुसअ'त-ए-शौक़ ने रक्खा न कहीं का हम को

वर्ना हर दिल में जगह अपनी बना ली होती

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