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चलो कुछ तो राह तय हो न चले तो भूल होगी - एज़ाज़ अफ़ज़ल कविता - Darsaal

चलो कुछ तो राह तय हो न चले तो भूल होगी

चलो कुछ तो राह तय हो न चले तो भूल होगी

अभी बंद हर गली है जो खुलेगी तूल होगी

तिरे हुस्न की वदीअत मिरी जुरअत-ए-नज़ारा

तिरे रू-ब-रू झुकेगी तो नज़र की भूल होगी

मिरे हम-सफ़र बढ़ेंगे मुझे रास्ता बता कर

मिरे पाँव से उड़ी है मिरे सर पे धूल होगी

मुझे क़िबला-रू बिठा कर मिरे हाथ उठाने वालो

ये यक़ीन भी दिला दो कि दुआ क़ुबूल होगी

चलो मान लें ये दोनों कोई शय है मस्लहत भी

न सितम का दिल दुखेगा न वफ़ा मलूल होगी

तिरा फ़न-ए-क़िस्सा-गोई अभी दार तक ही पहुँचा

मिरे शौक़ की कहानी अभी और तूल होगी

वो लहू की धार 'अफ़ज़ल' जो है क़र्ज़ ख़ंजरों पर

न करेंगे हम तक़ाज़ा न कभी वसूल होगी

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