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ऐ नक़्श-गरो लौह-ए-तहरीर हमें दे दो - एज़ाज़ अफ़ज़ल कविता - Darsaal

ऐ नक़्श-गरो लौह-ए-तहरीर हमें दे दो

ऐ नक़्श-गरो लौह-ए-तहरीर हमें दे दो

हम अपने मुसव्विर हैं तस्वीर हमें दे दो

आग़ोश-ए-कमाँ अब तक अफ़्कार का ख़ाली है

तुम अपनी निगाहों के कुछ तीर हमें दे दो

क्या तोल रहे हो तुम हाथों में ख़िरद-मंदो

ज़ेवर ये जुनूँ का है ज़ंजीर हमें दे दो

ऐ ख़ाली कटोरों के बे-कैफ़ निगहबानों

मय-ख़ाना हमारी है जागीर हमें दे दो

तुम तो न झुका पाए गर्दन दिल-ए-सरकश की

ऐ अहल-ए-सितम लाओ शमशीर हमें दे दो

आशुफ़्ता लकीरें हैं तहरीर की नौ-मश्क़ी

लिख लेंगे हमीं लौह-ए-तक़दीर हमें दे दो

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