याद
याद एक बे-रंग बे-महक
मुरझाया हुआ गुलाब
जिस के काँटों की चुभन
बाक़ी रहती है सदा
याद-ए-माज़ी की बनाई हुई
एक धुँदली तस्वीर
मेल नहीं खाता जिस से हाल का चेहरा
फिर भी लगी है दिल की दीवार पर
याद टूटा-फूटा एक ऐसा खिलौना
जिस से इंसान दिल बहलाना चाहे
बे-कार होने के बावजूद
उसे फेंकना नहीं चाहे
याद एक सराब
ज़ीस्त के रेगिस्तान में
जो और भी बढ़ा दे
थके हारे मुसाफ़िर की प्यास
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