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किरदार - एलिज़ाबेथ कुरियन मोना कविता - Darsaal

किरदार

ज़िंदगी के नाटक में

एक अदाकारा हूँ मैं

ये होगा अलमिया या रज़मिया

कौन बता सकता है

जब पर्दा उठता है

मुझे अपना किरदार अदा करना होता है

कुछ सोचे-समझे बग़ैर

दूसरे अदाकारों के इशारों पर

बोलने पड़ते हैं अपने मुकालमे

मेरे किरदार हैं बे-शुमार

मुख़्तलिफ़ जज़्बात लिए

मदद करने के लिए मुझे

पस-ए-पर्दा कोई नहीं है

क्या मैं ने अपना किरदार सहीह निभाया

जो कहना था सही कहा सही ढंग से

क्या मैं ना-कामयाब थी

क्या सामईन की तालियाँ

और नक़्क़ादों की दाद मैं ने हासिल की

या फिर सब की नज़रों में गिर गई

इन सवालात का वक़्त ही जवाब देगा

पर्दा गिरने के बा'द

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