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हिफ़ाज़त - एलिज़ाबेथ कुरियन मोना कविता - Darsaal

हिफ़ाज़त

मैं उस सिगरेट का टुकड़ा हूँ

जिसे तुम ने पिया था अपनी ख़ुशी के लिए

और अब अपने जूते से

मसल देना चाहते हो

ताकि उस की चिंगारी आग न लगा दे

तुम्हारे लकड़ी-नुमा वजूद को

महफ़ूज़ रहने की तुम्हारी ख़्वाहिश

तुम्हारे जज़्बात को सुन कर देती है

किसी दूसरे की तड़प

तुम पर कोई असर नहीं करती

सिगरेट के बचे टुकड़े को

आसानी से फेंक सकते हो

मगर इस धुएँ का क्या करोगे

जो तुम्हारे दिल में भर गया है

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