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जग में आता है हर बशर तन्हा - एलिज़ाबेथ कुरियन मोना कविता - Darsaal

जग में आता है हर बशर तन्हा

जग में आता है हर बशर तन्हा

लौट जाता है फिर किधर तन्हा

कुछ दुआ भी तो हो मरीज़ के नाम

कब दवा का हुआ असर तन्हा

मुद्दतों ख़ुद को ही तराशा है

सीप में रह के इक गुहर तन्हा

उम्र-भर सब के काम आया जो

रो पड़ा ख़ुद को देख कर तन्हा

सब मसर्रत में साथ देते हैं

ग़म उठाएँगे हम मगर तन्हा

तर्क उल्फ़त जो उस ने की हम से

थामते हम रहे जिगर तन्हा

छाँव में बैठ कर गए हैं सभी

रह गया फिर से इक शजर तन्हा

कहकशाँ भी है और तारे भी

चाँद आता है क्यूँ नज़र तन्हा

यादों के कारवाँ मिले हम से

ख़ुद को समझे थे हम जिधर तन्हा

चार पल वस्ल के जो बीत गए

ख़ुद को पाया है किस क़दर तन्हा

बीच अपनों के रह के भी 'मोना'

ज़िंदगी हम ने की बसर तन्हा

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