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डूबने वाले को तिनके का सहारा है बहुत - एलिज़ाबेथ कुरियन मोना कविता - Darsaal

डूबने वाले को तिनके का सहारा है बहुत

डूबने वाले को तिनके का सहारा है बहुत

रात तारीक सही एक सितारा है बहुत

दर्द उठता है जिगर में किसी तूफ़ाँ की तरह

तब तिरी यादों के दामन का किनारा है बहुत

ज़ुल्म जिस ने किए वो शख़्स बना है मुंसिफ़

ज़ुल्म पर ज़ुल्म ने मज़लूम को मारा है बहुत

राह दुश्वार है पग पग पे हैं काँटे लेकिन

राह-रौ के लिए मंज़िल का इशारा है बहुत

उस को पाने की तमन्ना ही रही जीवन भर

दूर से हम ने मसर्रत को निहारा है बहुत

फ़ासले बढ़ते गए उम्र भी ढलती ही गई

वस्ल का ख़्वाब लिए वक़्त गुज़ारा है बहुत

होंट ख़ामोश थे इक आह भी हम भर न सके

बारहा दिल ने मगर तुम को पुकारा है बहुत

झूटी तारीफ़ से लगता है बहुत डर 'मोना'

मीठी बातों ने ही शीशे में उतारा है बहुत

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